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Navratri Upasana.. Know what to do and what not to do !! नवरात्री के उपवास या उपासना कैसे करे ?

Navratri

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नवरात्री उपासना.. जानिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं

नवरात्री के उपवास या उपासना कैसे करे ?         


Navratri Upasana..

Know what to do and what not to do

How to fast or worship during Navratri?

                     If you do this worship or fasting, then some rules of what you have to do and what not to do have been made according to the scriptures. The person who fasts or worships during Navratri. Some Yama and Niyama have been said for those persons according to Shastra. These rules are binding on them for the whole nine days. What is the spiritual, mental, physical fruit of all these things.              

              अगर आप ये उपासना या उपवास करते हो तो आप को क्या करना है और क्या नहीं करना है इसके कुछ नियम धर्मंशास्त्र के नुसार बनाये गए है. जो व्यक्ति नवरात्री के उपवास या उपासना करते है. उन व्यक्तियों केलिए कुछ यम और नियम शास्त्र के नुसार कहे गए है. उन्हें ये नियम पुरे नौ दिन  बंधनकारक होते है. ये सभी बातों का आध्यात्मिक, शारीरिक, शारीरिक फल क्या है.

  • १)    उस व्यक्ति को केश कर्तन ( बाल काटना, दाढ़ी करना, आय ब्रो करना, हेअर व्याक्सिन करना) मना है.
  • २)    संपूर्ण नवरात्री ब्रम्हचर्य का पालन करना है.
  • ३)    यदि आप दुसरे के घर जाते हो तो उसके घर के पलंग, बेड पर सोना या सिर्फ बैठना भी परहेज करे. ये नियम के विरुद्ध है.
  • ४)    पैरों में जूते, चप्पल कुछ भी नहीं पहने.
  • ५)    मन को शांत और प्रसन्न रखे.
  • ६)    दूसरों का किसी भी प्रकार का उपकार न ले. चाहे घर के सदस्य क्यों न हों. इन नौ दिनों में खुद का काम खुद करे.
  • किसी भी अन्य स्त्री या नारी को देखते ही देवी माँ की अनुभूति या सन्मान करे                   

                   अब आइये बात करते है नवरात्री के उपवास के बारे में. उपवास का मतलब होता है वो शक्ती जिसके सानिध्य या पास रहना या निकट जाना. इसका मतलब है हर वक्त उस परमेश्वर (शक्ती) को याद करना, उसके बारे में सोचना, उसके ऊपर सब कुछ निछावर कर देना. इन सभी बातों केलिए सात्विक शुद्ध अन्न ग्रहण या सेवन करना जरुरी होता है. नवरात्री में उपवास करने का चलन इसी प्रकार से प्रचलित हुआ है.

            मुख्यरूप से घर के प्रधान ( प्रमुख व्यक्ति ) ये उपवास करते है. आज-कल कोई भी व्यक्ति नवरात्री के उपवास करते है. असल में प्रधान व्यक्ति के मृत्यु उपरांत जो व्यक्ति घर का प्रमुख होता है उसे ये करना होता है. ये परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. इसी वजह से सभी परम्परायें युही पीढ़ी दर पीढ़ी चली आती है. इसके कारण जो संस्कार, कुलाचार सभी पीढ़ियों को मिलते रहते है.

            इस उपवास में अन्न ग्रहण करने से बेहतर अगर फलाहार, दूध से बने पदार्थ का सेवन करते है तो अच्छा है. अगर इन दिनों पहले किसीकी मृत्यु होती है तो सभी कार्य, संस्कार होने के बाद अगर बाकि बचे दिनों में उपवास रख सकते है. अगर नवरात्री के समय  किसी की मृत्यु होती है तो किसी अन्य बाहरी व्यक्ति को उसकी पूजा, दिया इत्यादि कर्म करने को कहे या उनसे करवा ले . उसे बाहरसे मिष्ठान, नैवेद्य लाकर भोग लगायें.

            नवरात्री में कुमारिका पूजन का बहुत बड़ा महत्त्व है. हो सके तो हर दिन एक कुमारी या नौवे दिन कुमारिका पूजन अवश्य करें. नवरात्री में साधक खुद या ब्राम्हणोद्वारा सप्तशती का पाठ जरुर करें. इस सप्तशती पाठ में देवी की स्तुति की है, दुःख, दारिद्र, अडचने और बीमारी दूर करने हेतु इसका उल्लेख इस पाठ में किया गया है. इसीलिए नवरात्री में सप्तशती पठन को महत्व दिया गया है. सप्तशती के पाठ का प्रत्येक अक्षर अग्नी समान है. शास्त्र में राहुकाल के समय दौरान सप्तशती पाठ का विशेष महत्व है. श्रीसूक्त पाठ राहुकाल दौरान करना चाहिए इससे आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत और वास्तु में अष्टलक्ष्मी प्रसन्न होने केलिए इसमें प्रार्थना की गई है.

            कुम्कुमार्चन.... ये देवी को बहुतही प्रिय है ऐसा शास्त्र में कहा गया है. अगर आपके पास श्री यंत्र है तो उसके ऊपर सिर्फ ललिता सहत्र नामावलीका पठन करे. इस विधि में हल्दी का बनाया कुमकुम शास्त्र के विधि विधान नुसार ही यंत्र के ऊपर डालते मंत्र पठन करे लेकिन इस विधि को किसी जानकार व्यक्ति या गुरूजी के मार्गदर्शन से ही करें. बिना जानकारी कोई विधि न करें. अगर आपको इनमे से कुछ भी नहीं आता है या समझता है तो वो सिर्फ “ जय जगदंब श्री जगदंब “ ये मंत्र का पठन मन में पुरे नौ दिन करना चाहिए. नवरात्री में अष्टमीको देवी की बहुत सारे विधियों से पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्री में अष्टमीके दिन का बहुत बड़ा महत्व है. उस दिन आधी रात्र को भद्रकाली माँ की उत्पत्ति होती है. इसलिए ये तिथि को महाअष्टमी भी कहा जाता है. इस दिन देवी के लिए शास्त्र के नुसार होमहवन का प्रयोजन किया जाता है. इस दिन महाराष्ट्र में माटीकी मटकी को फूंक मारने (घागरी फूंकने) की परंपरा है. महालक्ष्मी का पूजन इस दिन को किया जाता है.

        नवरात्री में माला बंधन ये विधि हर दिन किया जाता है. जो घट स्थापन किया गया है उसे हर दिन एक नयी माला लगाई जाती है. पहले दिन खाने के पान ( पत्ते ) की माला, दुसरे और तीसरे दिन रक्त वर्ण पुष्प ( लाल रंग के फुल ), उसके बाद तीन दिन गेंदा, सोनचाफा, शेवंती, तुलसी की मंजुला या सफ़ेद खुशबूदार फूलों की माला लगाई जाती है. अगर फूलों की कमी हो तो आप आपने पसंद के नुसार फूलों की माला लगा सकते है.

            मंत्र साधना का महत्व नवरात्री में होने के कारण हर किसी को यह मंत्र साधना करना हितकारक होगा. इसलिए अपने शक्ती नुसार कोई भी एक मंत्र का पठन जरुर करिए. अगर स्तोत्र का पठन करते हो तो भी उपयुक्त है.. जैसे दुर्गा स्तोत्र का पाठ, महालक्ष्मी अष्टक, कनकधारा स्तोत्र, राम रक्षा स्तोत्र, देवी अपराध स्तोत्र, श्रीसूक्त स्तोत्र, देवी ३२ नामावली स्तोत्र, शरन्य मंत्र .

            महाराष्ट्र में देवी के साढ़े तीन पीठ (३ १/२) मुख्य मंदिर है. कोल्हापुर की लक्ष्मी माता, तुळजापुर की भवानी माता, वणी की सप्तशृंगी और माहुर गड की रेणुका माता. माहुर गड की रेणुका माता का मंदिर अर्धपीठ कहलाता है. माहुर गड को सिर्फ मुख पूजन होता है. महाराष्ट्र में इसे तान्दाला कहते है जो पार्वती माता का रूप है जंहा शिव का लोप है. अगर आप देखोगे तो बाकि तीनों मंदिरों में देवी के मूर्ति के ऊपर शिव लिंग की स्थापना की गई है. इसका मतलब वहां शिव और शक्ती दोनों स्थापित है. इसलिए नवरात्री में इन मंदिरों का दर्शन जरुर ले. अगर संभव नहीं तो पास के देवी के मंदिर में जाकर तनमन सें देवी की आराधना करे.

            अपने परम्परानुसार या शास्त्र नुसार जो नवरात्री के घट का स्थापन किया है उसे नवमी या दशमी के दिन विसर्जन ( उद्यापन) करना होता है. वो आप अपने रीतिरिवाज के अनुसार कर सकते हो.

            यह सब महाराष्ट्र की परम्परानुसार है. जैसे भारत वर्ष में हर प्रांत के नुसार कुछ प्रथाएं अलग भी हो सकती है. वैसे असम, कलकत्ता, दक्षिण भारत में भी कुछ परम्पराये भिन्न है. लेकिन सभी का एक ही उद्धेश्य है.....देवी शक्ती की आराधना, उपासना .
जय अंबे जय जगदंबे  !!


 

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